यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं, पर अधमिर्यों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापीयों, अपवित्रों और अशुद्धों, मां-बाप के घात करने वालों, हत्यारों। व्याभिचारियों, पुरूषगामियों, मनुष्य के बेचने वालों, झूठों, और झूठी शपथ खाने वालों, और इन को छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये ठहराई गई है। यही परमधन्य परमेश्वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपा गया है॥
प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।