- यिर्मयाह 1
- यिर्मयाह 2
- यिर्मयाह 3
- यिर्मयाह 4
- यिर्मयाह 5
- यिर्मयाह 6
- यिर्मयाह 7
- यिर्मयाह 8
- यिर्मयाह 9
- यिर्मयाह 10
- यिर्मयाह 11
- यिर्मयाह 12
- यिर्मयाह 13
- यिर्मयाह 14
- यिर्मयाह 15
- यिर्मयाह 16
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- यिर्मयाह 21
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- यिर्मयाह 29
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- यिर्मयाह 31
- यिर्मयाह 32
- यिर्मयाह 33
- यिर्मयाह 34
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- यिर्मयाह 36
- यिर्मयाह 37
- यिर्मयाह 38
- यिर्मयाह 39
- यिर्मयाह 40
- यिर्मयाह 41
- यिर्मयाह 42
- यिर्मयाह 43
- यिर्मयाह 44
- यिर्मयाह 45
- यिर्मयाह 46
- यिर्मयाह 47
- यिर्मयाह 48
- यिर्मयाह 49
- यिर्मयाह 50
- यिर्मयाह 51
- यिर्मयाह 52
- धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो। वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के तीर पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब घाम होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।
- क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएं मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानी की नहीं, वरन कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूंगा।
- तब उस समय तुम मुझ को पुकारोगे और आकर मुझ से प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूंगा।
- मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुन कर तुझे बढ़ी-बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता।
- तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे।
- क्या मेरे लिये कोई भी काम कठिन है?
- हे प्रभु यहोवा, तू ने बड़े सामर्थ और बढ़ाई हुई भुजा से आकाश और पृथ्वी को बनाया है! तेरे लिये कोई काम कठिन नहीं है।
- हे यहोवा मुझे चंगा कर, तब मैं चंगा हो जाऊंगा; मुझे बचा, तब मैं बच जाऊंगा; क्योंकि मैं तेरी ही स्तुति करता हूँ।
- मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं।
- फिर यहोवा की यह वाणी है, क्या कोई ऐसे गुप्त स्थानों में छिप सकता है, कि मैं उसे न देख सकूं? क्या स्वर्ग और पृथ्वी दोनों मुझ से परिपूर्ण नहीं हैं?
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