- नीतिवचन 1
- नीतिवचन 2
- नीतिवचन 3
- नीतिवचन 4
- नीतिवचन 5
- नीतिवचन 6
- नीतिवचन 7
- नीतिवचन 8
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- नीतिवचन 10
- नीतिवचन 11
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- नीतिवचन 13
- नीतिवचन 14
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- नीतिवचन 21
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- नीतिवचन 26
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- नीतिवचन 28
- नीतिवचन 29
- नीतिवचन 30
- नीतिवचन 31
- अपने कामों को यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी कल्पनाएं सिद्ध होंगी।
- कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उन को अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना। और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा॥
- तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
- जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
- सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।
- जैसे जल में मुख की परछाई सुख से मिलती है, वैसे ही एक मनुष्य का मन दूसरे मनुष्य के मन से मिलता है।
- मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
- लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उस को चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।
- जो धर्म और कृपा का पीछा पकड़ता है, वह जीवन, धर्म और महिमा भी पाता है।
- उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।
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